कुछ अनजान फैसले

दोनो एक दूसरे से बेगाने थे

नए बनते रिश्ते से अनजाने थे

अपनी दो अलग अलग जिंदगियो को एक जिंदगी में बदलने चले थे,

अपना सब पिछला भूला कर हर कदम साथ लेने लगे थे

 

जिंदगी में नया मकसद बनाने लगे थे

नए रिश्ते में नई खुशियां तलाशने लगे थे

एक दूसरे को खुद से ज्यादा चाहने लगे थे

अब खयालो के साथ खवाबो को भी बताने लगे थे

 

बिना जिम्मेदारी समझे

खुद को मा-बाप बना बैठे थे

उस एक नई जिंदगी को

अब दोनों अपनी जिम्मेदारी बना बैठे थे

 

समय के साथ सब कुछ सही करने में खुशियां भूल बैठे,

अपने बसाये घर को एक बेखबर दुनिया में बदल बैठे

क्या पता था उन्हें की दुनिया के रंग में इस कदर मिल जाएंगे कि खुद को एक दूसरे से ही अलग कर जायँगे

पहले कभी एक दूसरे को ऊपर रख कर फैसला लिया करते थे

क्या पता था आज उसी फैसले से एक दूसरे को अलग कर जायँगे

 

 

दुनिया की चकाचोंध में लीन दोनो ने अपने बंधे रिश्ते को एक नाज़ुक गाँठ की तरह खोल दिया

कुछ पता नही चला और समय ने उनका नाता ही तोड़ दिया

 

सबने सोचा अपने बारे में

पर हर कोई उस बालक को भुला बैठा था

जो कभी घर की आँखों का तारा बन बैठा था

वो हर बात से अनजान था

बेचारा क्या करता इस मतलब की दुनिया का वो नया मेहमान था

 

जिन दो शख्सों को वो हर वक़्त अपने पास देखता था

आज उसे किसी एक को हमेशा के लिए छोड़ना था

 

इस फैसले से ज्यादा आसान उसे अपनी जिंदगी का फैसला लेना लगा

और उस दिन –

 

उनकी आंखों का वो तारा उन तारो के पास जा बैठा…

You might also like More from author